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This stotram is in सरल दॆवनागरी(हिंन्दी). View this in
शुद्ध दॆवनागरी (Samskritam), with appropriate anuswaras marked.
पुरुष सूक्तम्
ॐ तच्चं योरावृ'णीमहे | गातुं यज्ञाय' | गातुं यज्ञप'तये | दैवी'' स्वस्तिर'स्तु नः | स्वस्तिर्मानु'षेभ्यः | ऊर्ध्वं जि'गातु भेषजं | शं नो' अस्तु द्विपदे'' | शं चतु'ष्पदे |
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः' ‖
सहस्र'शीर्-षा पुरु'षः | सहस्राक्षः सहस्र'पात् |
स भूमिं' विश्वतो' वृत्वा | अत्य'तिष्ठद्दशांगुलम् ‖
पुरु'ष एवेदग्-म् सर्वम्'' | यद्भूतं यच्च भव्यम्'' |
उतामृ'तत्व स्येशा'नः | यदन्ने'नातिरोह'ति ‖
एतावा'नस्य महिमा | अतो ज्यायाग्'श्च पूरु'षः |
पादो''ऽस्य विश्वा' भूतानि' | त्रिपाद'स्यामृतं' दिवि ‖
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरु'षः | पादो''ऽस्येहाऽऽभ'वात्पुनः' |
ततो विष्वङ्व्य'क्रामत् | साशनानशने अभि ‖
तस्मा''द्विराड'जायत | विराजो अधि पूरु'षः |
स जातो अत्य'रिच्यत | पश्चाद्-भूमिमथो' पुरः ‖
यत्पुरु'षेण हविषा'' | देवा यज्ञमत'न्वत |
वसंतो अ'स्यासीदाज्यम्'' | ग्रीष्म इध्मश्शरध्धविः ‖
सप्तास्या'सन्-परिधयः' | त्रिः सप्त समिधः' कृताः |
देवा यद्यज्ञं त'न्वानाः | अब'ध्नन्-पुरु'षं पशुं ‖
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्' | पुरु'षं जातम'ग्रतः |
तेन' देवा अय'जंत | साध्या ऋष'यश्च ये ‖
तस्मा''द्यज्ञाथ्स'र्वहुतः' | संभृ'तं पृषदाज्यं |
पशूग्-स्ताग्-श्च'क्रे वायव्यान्' | आरण्यान्-ग्राम्याश्च ये ‖
तस्मा''द्यज्ञाथ्स'र्वहुतः' | ऋचः सामा'नि जज्ञिरे |
छंदाग्^म्'सि जज्ञिरे तस्मा''त् | यजुस्तस्मा'दजायत ‖
तस्मादश्वा' अजायंत | ये के चो'भयाद'तः |
गावो' ह जज्ञिरे तस्मा''त् | तस्मा''ज्जाता अ'जावयः' ‖
यत्पुरु'षं व्य'दधुः | कतिथा व्य'कल्पयन् |
मुखं किम'स्य कौ बाहू | कावूरू पादा'वुच्येते ‖
ब्राह्मणो''ऽस्य मुख'मासीत् | बाहू रा'जन्यः' कृतः |
ऊरू तद'स्य यद्वैश्यः' | पद्भ्याग्^म् शूद्रो अ'जायतः ‖
चंद्रमा मन'सो जातः | चक्षोः सूर्यो' अजायत |
मुखादिंद्र'श्चाग्निश्च' | प्राणाद्वायुर'जायत ‖
नाभ्या' आसीदंतरि'क्षम् | शीर्ष्णो द्यौः सम'वर्तत |
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रा''त् | तथा' लोकाग्-म् अ'कल्पयन् ‖
वेदाहमेतं पुरु'षं महांतम्'' | आदित्यव'र्णं तम'सस्तु पारे |
सर्वा'णि रूपाणि' विचित्य धीरः' | नामा'नि कृत्वाऽभिवदन्, यदाऽऽस्ते'' ‖
धाता पुरस्ताद्यमु'दाजहार' | शक्रः प्रविद्वान्-प्रदिशश्चत'स्रः |
तमेवं विद्वानमृत' इह भ'वति | नान्यः पंथा अय'नाय विद्यते ‖
यज्ञेन' यज्ञम'यजंत देवाः | तानि धर्मा'णि प्रथमान्या'सन् |
ते ह नाकं' महिमानः' सचंते | यत्र पूर्वे' साध्यास्संति' देवाः ‖
अद्भ्यः संभू'तः पृथिव्यै रसा''च्च | विश्वक'र्मणः सम'वर्तताधि' |
तस्य त्वष्टा' विदध'द्रूपमे'ति | तत्पुरु'षस्य विश्वमाजा'नमग्रे'' ‖
वेदाहमेतं पुरु'षं महांतम्'' | आदित्यव'र्णं तम'सः पर'स्तात् |
तमेवं विद्वानमृत' इह भ'वति | नान्यः पंथा' विद्यतेऽय'नाय ‖
प्रजाप'तिश्चरति गर्भे' अंतः | अजाय'मानो बहुधा विजा'यते |
तस्य धीराः परि'जानंति योनिम्'' | मरी'चीनां पदमि'च्छंति वेधसः' ‖
यो देवेभ्य आत'पति | यो देवानां'' पुरोहि'तः |
पूर्वो यो देवेभ्यो' जातः | नमो' रुचाय ब्राह्म'ये ‖
रुचं' ब्राह्मं जनय'ंतः | देवा अग्रे तद'ब्रुवन् |
यस्त्वैवं ब्रा''ह्मणो विद्यात् | तस्य' देवा असन् वशे'' ‖
ह्रीश्च' ते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ'' | अहोरात्रे पार्श्वे |
नक्ष'त्राणि रूपम् | अश्विनौ व्यात्तम्'' |
इष्टं म'निषाण | अमुं म'निषाण | सर्वं' मनिषाण ‖
तच्चं योरावृ'णीमहे | गातुं यज्ञाय' | गातुं यज्ञप'तये | दैवी'' स्वस्तिर'स्तु नः | स्वस्तिर्मानु'षेभ्यः | ऊर्ध्वं जि'गातु भेषजं | शं नो' अस्तु द्विपदे'' | शं चतु'ष्पदे |
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः' ‖