View this in:
English Devanagari Telugu Tamil Kannada Malayalam Gujarati Oriya Bengali |
This stotram is in शुद्ध दॆवनागरी (Samskritam). View this in सरल दॆवनागरी (हिंन्दी), with simplified anuswaras for easy reading.

नक्षत्र सूक्तम् (नक्षत्रेष्टि)

तैत्तिरीय ब्रह्मणम् | अष्टकम् - 3 प्रश्नः - 1
तैत्तिरीय संहिताः | काण्ड 3 प्रपाठकः - 5 अनुवाकम् - 1

ॐ ‖ ग्निर्नः' पातु कृत्ति'काः | नक्ष'त्रं देवमि'न्द्रियम् | दमा'सां विचक्षणम् | विरासं जु'होतन | यस्य भान्ति' श्मयो यस्य' केतवः' | यस्येमा विश्वा भुव'नानि सर्वा'' | स कृत्ति'काभिभिंवसा'नः | ग्निर्नो' देवस्सु'विते द'धातु ‖ 1

प्र
जाप'ते रोहिणीवे'तु पत्नी'' | विश्वरू'पा बृती चित्रभा'नुः | सा नो' ज्ञस्य' सुविते द'धातु | यथा जीवे'म स्सवी'राः | रोहिणी देव्युद'गात्पुरस्ता''त् | विश्वा' रूपाणि' प्रतिमोद'माना | प्रजाप'तिग्^म् विषा' र्धय'न्ती | प्रिया देवानामुप'यातु ज्ञम् ‖ 2 ‖

सोमो राजा' मृगशीर्षे आगन्न्' | शिवं नक्ष'त्रं प्रियम'स्य धाम' | प्याय'मानो बहुधा जने'षु | रेतः' प्रजां यज'माने दधातु | यत्ते नक्ष'त्रं मृगशीर्षमस्ति' | प्रियग्^म् रा'जन् प्रियत'मं प्रियाणा''म् | तस्मै' ते सोम विषा' विधेम | शन्न' एधि द्विदे शं चतु'ष्पदे ‖ 3

र्द्रया' रुद्रः प्रथ'मा न एति | श्रेष्ठो' देवानां पति'रघ्नियाना''म् | नक्ष'त्रमस्य विषा' विधेम | मा नः' प्रजाग्^म् री'रिन्मोत वीरान् | हेति रुद्रस्य परि'णो वृणक्तु | र्द्रा नक्ष'त्रं जुषताग्^म् विर्नः' | प्रमुञ्चमा'नौ दुरितानि विश्वा'' | अपाघशगं' सन्नुदतामरा'तिम् | ‖ 4‖

पुन'र्नो देव्यदि'तिस्पृणोतु | पुन'र्वसूनः पुरेतां'' ज्ञम् | पुन'र्नो देवा भिय'न्तु सर्वे'' | पुनः' पुनर्वो विषा' यजामः | वा न देव्यदि'तिरर्वा | विश्व'स्य र्त्री जग'तः प्रतिष्ठा | पुन'र्वसू विषा' र्धय'न्ती | प्रियं देवाना-मप्ये'तु पाथः' ‖ 5‖

बृस्पतिः' प्रमं जाय'मानः | तिष्यं' नक्ष'त्रभि सम्ब'भूव | श्रेष्ठो' देवानां पृत'नासुजिष्णुः | दिशोऽनुर्वा अभ'यन्नो अस्तु | तिष्यः' पुरस्ता'दुत म'ध्यतो नः' | बृस्पति'र्नः परि'पातु श्चात् | बाधे'तान्द्वेषो अभ'यं कृणुताम् | सुवीर्य'स्य पत'यस्याम ‖ 6

दग्^म् र्पेभ्यो' विर'स्तु जुष्टम्'' | श्रेषा येषा'मनुन्ति चेतः' | ये न्तरि'क्षं पृथिवीं क्षियन्ति' | ते न'स्सर्पासोमाग'मिष्ठाः | ये रो'ने सूर्यस्यापि' र्पाः | ये दिवं' देवीमनु'ञ्चर'न्ति | येषा'मश्रेषा अ'नुन्ति कामम्'' | तेभ्य'स्सर्पेभ्यो मधु'मज्जुहोमि ‖ 7 ‖

उप'हूताः पिरो ये घासु' | मनो'जवसस्सुकृत'स्सुकृत्याः | ते नो नक्ष'त्रेमाग'मिष्ठाः | स्वधाभि'र्यज्ञं प्रय'तं जुषन्ताम् | ये अ'ग्निग्धा येऽन'ग्निदग्धाः | ये'ऽमुल्लोकं पितरः' क्षियन्ति' | याग्^श्च' विद्मयाग्^म् उ' न प्र'विद्म | घासु' ज्ञग्^म् सुकृ'तं जुषन्ताम् ‖ 8‖

वांतिः फल्गु'नीनामसि त्वम् | तद'र्यमन् वरुणमित्र चारु' | तं त्वा' यग्^म् स'नितारगं' सनीनाम् | जीवा जीव'न्तमु संवि'शेम | येनेमा विश्वा भुव'नानि सञ्जि'ता | यस्य' देवा अ'नुंयन्ति चेतः' | र्यमा राजाऽजस्तु वि'ष्मान् | फल्गु'नीनामृभो रो'रवीति ‖ 9 ‖

श्रेष्ठो' देवानां'' भगवो भगासि | तत्त्वा' विदुः फल्गु'नीस्तस्य' वित्तात् | स्मभ्यं' क्षत्रजरगं' सुवीर्यम्'' | गोदश्व'दुसन्नु'देह | भगो'ह दाता भग इत्प्र'दाता | भगो' देवीः फल्गु'नीरावि'वेश | भस्येत्तं प्र'वं ग'मेम | यत्र' देवैस्स'मादं' मदेम | ‖ 10 ‖

यातु देवस्स'वितोप'यातु | हिण्यये'न सुवृता रथे'न | वन्, हस्तगं' सुभगं' विद्मनाप'सम् | प्रयच्छ'न्तं पपु'रिं पुण्यमच्छ' | हस्तः प्रय'च्छ त्वमृतं वसी'यः | दक्षि'णे प्रति'गृभ्णीम एनत् | दातार'द्य स'विता वि'देय | यो नो हस्ता'य प्रसुवाति' ज्ञम् ‖11 ‖

त्वष्टा नक्ष'त्रभ्ये'ति चित्राम् | सुभग्^म् स'संयुतिग्^म् राच'मानाम् | निवेशय'न्नमृतान्मर्त्याग्'श्च | रूपाणि' पिग्ंशन् भुव'नानि विश्वा'' | तन्नस्त्वष्टा तदु' चित्रा विच'ष्टाम् | तन्नक्ष'त्रं भूरिदा अ'स्तु मह्यम्'' | तन्नः' प्रजां वीरव'तीग्^म् सनोतु | गोभि'र्नोश्वैस्सम'नक्तु यज्ञम् ‖ 12

वा
युर्नक्ष'त्रभ्ये'ति निष्ट्या''म् | तिग्मशृं'गो वृभो रोरु'वाणः | मीन् भुव'ना मारिश्वा'' | अ द्वेषागं'सि नुदतामरा'तीः | तन्नो' वायस्तदु निष्ट्या' शृणोतु | तन्नक्ष'त्रं भूरिदा अ'स्तु मह्यम्'' | तन्नो' देवासो अनु'जानन्तु कामम्'' | यथा तरे'म दुरितानि विश्वा'' ‖ 13

दू
स्मच्छत्र'वो यन्तु भीताः | तदि'न्द्राग्नी कृ'णुतां तद्विशा'खे | तन्नो' देवा अनु'मदन्तु ज्ञम् | श्चात् पुस्तादभ'यन्नो अस्तु | नक्ष'त्राणामधि'पत्नी विशा'खे | श्रेष्ठा'विन्द्राग्नी भुव'नस्य गोपौ | विषू'श्शत्रू'नबाध'मानौ | अक्षुध'न्नुदतामरा'तिम् | ‖ 14

पू
र्णा श्चादुपूर्णा पुरस्ता''त् | उन्म'ध्यतः पौ''र्णमासी जि'गाय | तस्यां'' देवा अधि'ंवस'न्तः | त्तमे नाक' ह मा'दयन्ताम् | पृथ्वी सुवर्चा' युतिः जोषा''ः | पौर्णमास्युद'गाच्छोभ'माना | प्यायय'न्ती दुरितानि विश्वा'' | रुं दुहां यज'मानाय ज्ञम् |

द्ध्यास्म' व्यैर्नम'सोसद्य' | मित्रं देवं मि'त्रधेयं' नो अस्तु | नूराधान्, विषा' र्धय'न्तः | तं जी'वे दः सवी'राः | चित्रं नक्ष'त्रमुद'गात्पुरस्ता''त् | नूराधा ति यद्वद'न्ति | तन्मित्र ए'ति थिभि'र्देयानै''ः | हिण्ययैर्वित'तैन्तरि'क्षे ‖ 16 ‖

इन्द्रो'' ज्येष्ठामनु नक्ष'त्रमेति | यस्मि'न् वृत्रं वृ'त्र तूर्ये' तार' | तस्मि'न्वय-मृतं दुहा'नाः | क्षुध'न्तरे दुरि'तिं दुरि'ष्टिम् | पुन्दराय' वृभाय' धृष्णवे'' | अषा'ढा सह'मानाय मीढुषे'' | इन्द्रा'य ज्येष्ठा मधु'द्दुहा'ना | रुं कृ'णोतु यज'मानाय लोकम् | ‖ 17 ‖

मूलं' प्रजां वीरव'तीं विदेय | परा''च्येतु निरृ'तिः पराचा | गोभिर्नक्ष'त्रं शुभिस्सम'क्तम् | अह'र्भूयाद्यज'माना मह्यम्'' | अह'र्नो द्य सु'विते द'दातु | मूलं नक्ष'त्रमिति यद्वद'न्ति | परा'चीं वाचा निरृ'तिं नुदामि | शिवं प्रजायै' शिवम'स्तु मह्यम्'' ‖ 18 ‖

या दिव्या आपः पय'सा सम्बभूवुः | या न्तरि'क्ष त पार्थि'वीर्याः | यासा'मषाढा अ'नुन्ति कामम्'' | ता पः शग्ग् स्योना भ'वन्तु | याश्च कूप्या याश्च' नाद्या''स्समुद्रिया''ः | याश्च' वैन्तीरुत प्रा'चीर्याः | यासा'मषाढा मधु' क्षय'न्ति | ता पः शग्ग् स्योना भ'वन्तु ‖19 ‖

न्नो विश्वे उप' शृण्वन्तु देवाः | तद'षाढा भिसंय'न्तु ज्ञम् | तन्नक्ष'त्रं प्रथतां शुभ्यः' | कृषिर्वृष्टिर्यज'मानाय कल्पताम् | शुभ्राः न्या' युतय'स्सुपेश'सः | र्मकृत'स्सुकृतो' वीर्या'वतीः | विश्वा''न् देवान्, विषा' र्धय'न्तीः | षाढाः कामुपा'यन्तु ज्ञम् ‖ 20 ‖

स्मिन् ब्रह्माभ्यज'त्सर्व'मेतत् | मुञ्च' लोमिदमू' सर्वम्'' | तन्नो नक्ष'त्रमभिजिद्विजित्य' | श्रियं' दधात्वहृ'णीयमानम् | भौ लोकौ ब्रह्म'णा सञ्जि'तेमौ | तन्नो नक्ष'त्रमभिजिद्विच'ष्टाम् | तस्मि'न्वयं पृत'नास्सञ्ज'येम | तन्नो' देवासो अनु'जानन्तु कामम्'' ‖ 21

शृ
ण्वन्ति' श्रोणामृत'स्य गोपाम् | पुण्या'मस्या उप'शृणोमि वाचम्'' | हीं देवीं विष्णु'पत्नीमजूर्याम् | प्रतीची' मेनाग्^म् विषा' यजामः | त्रेधा विष्णु'रुरुगायो विच'क्रमे | हीं दिवं' पृथिवीन्तरि'क्षम् | तच्छ्रोणैतिश्रव'-च्छमा'ना | पुण्यग्ग् श्लोकं यज'मानाय कृण्वती ‖ 22

ष्टौ देवा वस'वस्सोम्यासः' | चत'स्रो देवीराः श्रवि'ष्ठाः | ते ज्ञं पा''न्तु रज'सः पुरस्ता''त् | त्सरीण'मृतग्ग्' स्वस्ति | ज्ञं नः' पान्तु वस'वः पुरस्ता''त् | क्षितो'ऽभिय'न्तु श्रवि'ष्ठाः | पुण्यन्नक्ष'त्रभि संवि'शाम | मा नो अरा'तिगंसाऽगन्न्' ‖ 23

क्ष
त्रस्य राजा वरु'णोऽधिराजः | नक्ष'त्राणाग्^म् तभि'ग्वसि'ष्ठः | तौ देवेभ्यः' कृणुतो दीर्घमायुः' | तग्^म् हस्रा' भेजानि' धत्तः | ज्ञन्नो राजा वरु' उप'यातु | तन्नो विश्वे' भि संय'न्तु देवाः | तन्नो नक्ष'त्रग्^म् तभि'षग्जुषाणम् | दीर्घमायुः प्रति'रद्भेजानि' ‖ 24

ज एक'पादुद'गात्पुरस्ता''त् | विश्वा' भूतानि' प्रति मोद'मानः | तस्य' देवाः प्र'वं य'न्ति सर्वे'' | प्रोष्ठदासो' मृत'स्य गोपाः | विभ्राज'मानस्समिधाग्रः | आऽन्तरि'क्षमरुन्द्याम् | तग्^म् सूर्यं' देजमेक'पादम् | प्रोष्ठदासो अनु'यन्ति सर्वे'' ‖ 25 ‖

अहि'र्बुध्नियः प्रथ'मा न एति | श्रेष्ठो' देवाना'मुत मानु'षाणाम् | तं ब्रा''ह्मणास्सो'पास्सोम्यासः' | प्रोष्ठदासो' भिर'क्षन्ति सर्वे'' | त्वा एक'भि कर्म' देवाः | प्रोष्ठदा ति यान्, वद'न्ति | ते बुध्नियं' परिषद्यग्ग्' स्तुवन्तः' | अहिगं' रक्षन्ति नम'सोसद्य' ‖ 26

पू
षा रेवत्यन्वे'ति पन्था''म् | पुष्टिपती' पशुपा वाज'बस्त्यौ | मानि' व्या प्रय'ता जुषाणा | सुगैर्नो यानैरुप'यातां ज्ञम् | क्षुद्रान् शून् र'क्षतु रेवती' नः | गावो' नोश्वागं अन्वे'तु पूषा | अन्नगं रक्ष'न्तौ बहुधा विरू'पम् | वाजगं' सनुतां यज'मानाय ज्ञम् ‖ 27 ‖

श्विना'वश्वयुजोप'याताम् | शुङ्गमि'ष्ठौ सुयमे'भिरश्वै''ः | स्वं नक्ष'त्रग्^म् विषा यज'न्तौ | मध्वासम्पृ'क्तौ यजु'षा सम'क्तौ | यौ देवानां'' भिषजौ'' हव्यवाहौ | विश्व'स्य दूतामृत'स्य गोपौ | तौ नक्षत्रं जुजुषाणोप'याताम् | नमोऽश्विभ्यां'' कृणुमोऽश्वयुग्भ्या''म् ‖ 28 ‖

अप' पाप्मानं भर'णीर्भरन्तु | तद्यमो राजा भग'वान्, विच'ष्टाम् | लोस्य राजा' मतो हान्, हि | सुगं नःन्थामभ'यं कृणोतु | यस्मिन्नक्ष'त्रे म एति राजा'' | यस्मि'न्नेनभ्यषिं'चन्त देवाः | तद'स्य चित्रग्^म् विषा' यजाम | अप' पाप्मानं भर'णीर्भरन्तु ‖ 29

नि
वेश'नी ङ्गम'नी वसू'नां विश्वा' रूपाणि वसू''न्यावेशय'न्ती | स्रपोषग्^म् सुगा ररा'णा सा न्वर्च'सा संविदाना | यत्ते' देवा अद'धुर्भाधेममा'वास्ये ंवस'न्तो महित्वा | सा नो' ज्ञं पि'पृहि विश्ववारे यिन्नो' धेहि सुभगे सुवीरम्'' ‖ 30 ‖

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः' |