| English | | Devanagari | | Telugu | | Tamil | | Kannada | | Malayalam | | Gujarati | | Oriya | | Bengali | | |
| Marathi | | Assamese | | Punjabi | | Hindi | | Samskritam | | Konkani | | Nepali | | Sinhala | | Grantha | | |
अङ्गारक कवचम् (कुज कवचम्) अस्य श्री अङ्गारक कवचस्य, कश्यप ऋषीः, अनुष्टुप् चन्दः, अङ्गारको देवता, भौम प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥ ध्यानम् अथ अङ्गारक कवचम् नासां शक्तिधरः पातु मुखं मे रक्तलोचनः । वक्षः पातु वराङ्गश्च हृदयं पातु रोहितः । जानुजङ्घे कुजः पातु पादौ भक्तप्रियः सदा । फलश्रुतिः सर्वरोगहरं चैव सर्वसम्पत्प्रदं शुभम् । रोगबन्धविमोक्षं च सत्यमेतन्न संशयः ॥ ॥ इति श्री मार्कण्डेयपुराणे अङ्गारक कवचं सम्पूर्णम् ॥ |