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राहु कवचम् ध्यानम् । अथ राहु कवचम् । नीलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवंदितः । नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम । भुजंगेशो भुजौ पातु नीलमाल्यांबरः करौ । कटिं मे विकटः पातु ऊरू मे सुरपूजितः । गुल्फौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः । फलश्रुतिः ॥ इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णम् ॥ |