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सूर्याष्टकम् आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मभास्कर सप्ताश्व रध मारूढं प्रचंडं कश्यपात्मजं लोहितं रधमारूढं सर्व लोक पितामहं त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्म विष्णु महेश्वरं बृंहितं तेजसां पुंजं वायु माकाश मेवच बंधूक पुष्प संकाशं हार कुंडल भूषितं विश्वेशं विश्व कर्तारं महा तेजः प्रदीपनं तं सूर्यं जगतां नाधं ज्नान विज्नान मोक्षदं सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनं आमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्धिने स्त्री तैल मधु मांसानि हस्त्यजेत्तु रवेर्धिने इति श्री शिवप्रोक्तं श्री सूर्याष्टकं संपूर्णं |