| English | | Devanagari | | Telugu | | Tamil | | Kannada | | Malayalam | | Gujarati | | Oriya | | Bengali | | |
| Marathi | | Assamese | | Punjabi | | Hindi | | Samskritam | | Konkani | | Nepali | | Sinhala | | Grantha | | |
श्री गुरु स्तोत्रम् (गुरु वन्दनम्) अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किञ्चित्सचराचरम् । चिन्मयं व्यापियत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् । त्सर्वश्रुतिशिरोरत्नविराजित पदाम्बुजः । चैतन्यः शाश्वतःशान्तो व्योमातीतो निरञ्जनः । ज्ञानशक्तिसमारूढः तत्त्वमालाविभूषितः । अनेकजन्मसम्प्राप्त कर्मबन्धविदाहिने । शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापणं सारसम्पदः । न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः । मन्नाथः श्रीजगन्नाथः मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः । गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् । त्वमेव माता च पिता त्वमेव
|